कॉलेज का पहला दिन.......
एक कॉलेज किसी भी छात्र जीवन में एक नई शुरुआत है। स्कूल के बहुत अनुशासित जीवन के बाद कॉलेज आता है। यह हमें स्वतंत्रता के साथ-साथ जिम्मेदारी की भावना प्रदान करता है। हम अचानक यह सोचना शुरू कर देते हैं कि हम वास्तव में बड़े हो चुके हैं और अब हम कुछ भी कर सकते हैं। हम एक स्वतंत्र पक्षी की तरह महसूस करते हैं।
हम अपने रूम(होस्टल) से कुछ दूर नजदीकी तक पैदल चला वहां से गांधी मैदान तक बस के सफर और गांधी मैदान से बेली रोड, आशियना मोर तक लगभग एक घँटे के सफर के दौरान मैं एक ही बात बार बार सोचता रहा की,”कैसा रहेगा कॉलेज में मेरा पहला दिन?” कुछ इसी तरह के सोच और सवालों के सिलसिलों का सफर !!!!!!
फिर कॉलेज पहुंचा....... 15 दिन पहले से ही क्लास चल रहा था हम 7 जुलाई को बताया गया था उस हिसाब से हम बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ, बेली रोड, आशियना मोर पटना के कैम्पस में स्थित कॉलेज सबेरे 7:30 बजे पहुंच गया. हमें कहा गया था B.A.LLB पार्ट 1 की कक्षाएं सबेरे 8:00 से ही लगेंगी.
खैर, कॉलेज पहुँचने पर पता चला कि कक्षा की बात तो दूर यहाँ बैठना कहाँ है यह भी हमारे लिए तय नहीं हो पाया था. अब ऐसे में मेरे एक दोस्त जिसने में प्रवेश वक्त मिला था उसके साथ कॉलेज में अपनी कक्षा तलाशने निकल पड़ा. पता चला कि ऊपर के कमरे में कक्षा लगने वाली है. मैं भी उस कमरे में अन्य छात्रों के साथ बैठ गया.
आत्मविश्वास से ओतप्रोत भरा माहौल था मेरे आस पास।लेकिन जिस परिवेश में पल बढ़ कर मैं बड़ा हुआ था मेरे लिए यह सारी चीजे कल्पना के कागज पर उकेरी गई कहानी जैसी ही थी।सतही स्तर पर कहूँ तो सब कुछ एक दम फ़िल्मी।इसलिये इतने खुले वातावरण बावजूद मैं अपने पूर्वाग्रहों के कारण घुटा घुटा सा ही महसूस कर रहा था।
क्लास का समय होनेवाला था तो ज्यादा मुआयना किए बिना अपने सीट पर बैठ गया। पहली क्लास
Law history थी । क्लास रूम भी इतना बड़ा था जितना हमारा गाँव का पुश्तैनी दालान। क्लास रूम में फिर से हाज़िरी लगी। ये हाज़िरी यानी अटेंडन्स बहुत जरूरी चीज़ थी। परीक्षा में बैठने के लिए कम-से-कम पचहत्तर प्रतिशत अटेंडन्स अनिवार्य था। इसलिए क्लास के अंत में रहे न रहे लेकिन शुरू में रहना बहुत जरूरी था।एक क्लास ख़त्म होने के बाद कुछ समय मिलता था फिर दूसरी क्लास होती थी।दो क्लास के बाद आधा घंटे का गैप था जिसमें हम कुछ जाकर खाना खाकर आ सकते थे। बाक़ी की क्लास ख़त्म होने के बाद फिर से हम रूम (होस्टल) चल पड़े। कॉलेज के गेट से निकल कर फिर से एक अनजान दुनिया-सा लगा होस्टल से कॉलेज के बीच का ये रास्ता।फिर से शाम, फिर से रोना, फिर से सिर दर्द और फिर से सोना।
कॉलेज का पहला दिन इतना मजेदार होगा मैंने तो सोचा नहीं था.
एक कॉलेज किसी भी छात्र जीवन में एक नई शुरुआत है। स्कूल के बहुत अनुशासित जीवन के बाद कॉलेज आता है। यह हमें स्वतंत्रता के साथ-साथ जिम्मेदारी की भावना प्रदान करता है। हम अचानक यह सोचना शुरू कर देते हैं कि हम वास्तव में बड़े हो चुके हैं और अब हम कुछ भी कर सकते हैं। हम एक स्वतंत्र पक्षी की तरह महसूस करते हैं।
हम अपने रूम(होस्टल) से कुछ दूर नजदीकी तक पैदल चला वहां से गांधी मैदान तक बस के सफर और गांधी मैदान से बेली रोड, आशियना मोर तक लगभग एक घँटे के सफर के दौरान मैं एक ही बात बार बार सोचता रहा की,”कैसा रहेगा कॉलेज में मेरा पहला दिन?” कुछ इसी तरह के सोच और सवालों के सिलसिलों का सफर !!!!!!
फिर कॉलेज पहुंचा....... 15 दिन पहले से ही क्लास चल रहा था हम 7 जुलाई को बताया गया था उस हिसाब से हम बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ, बेली रोड, आशियना मोर पटना के कैम्पस में स्थित कॉलेज सबेरे 7:30 बजे पहुंच गया. हमें कहा गया था B.A.LLB पार्ट 1 की कक्षाएं सबेरे 8:00 से ही लगेंगी.
खैर, कॉलेज पहुँचने पर पता चला कि कक्षा की बात तो दूर यहाँ बैठना कहाँ है यह भी हमारे लिए तय नहीं हो पाया था. अब ऐसे में मेरे एक दोस्त जिसने में प्रवेश वक्त मिला था उसके साथ कॉलेज में अपनी कक्षा तलाशने निकल पड़ा. पता चला कि ऊपर के कमरे में कक्षा लगने वाली है. मैं भी उस कमरे में अन्य छात्रों के साथ बैठ गया.
आत्मविश्वास से ओतप्रोत भरा माहौल था मेरे आस पास।लेकिन जिस परिवेश में पल बढ़ कर मैं बड़ा हुआ था मेरे लिए यह सारी चीजे कल्पना के कागज पर उकेरी गई कहानी जैसी ही थी।सतही स्तर पर कहूँ तो सब कुछ एक दम फ़िल्मी।इसलिये इतने खुले वातावरण बावजूद मैं अपने पूर्वाग्रहों के कारण घुटा घुटा सा ही महसूस कर रहा था।
क्लास का समय होनेवाला था तो ज्यादा मुआयना किए बिना अपने सीट पर बैठ गया। पहली क्लास
Law history थी । क्लास रूम भी इतना बड़ा था जितना हमारा गाँव का पुश्तैनी दालान। क्लास रूम में फिर से हाज़िरी लगी। ये हाज़िरी यानी अटेंडन्स बहुत जरूरी चीज़ थी। परीक्षा में बैठने के लिए कम-से-कम पचहत्तर प्रतिशत अटेंडन्स अनिवार्य था। इसलिए क्लास के अंत में रहे न रहे लेकिन शुरू में रहना बहुत जरूरी था।एक क्लास ख़त्म होने के बाद कुछ समय मिलता था फिर दूसरी क्लास होती थी।दो क्लास के बाद आधा घंटे का गैप था जिसमें हम कुछ जाकर खाना खाकर आ सकते थे। बाक़ी की क्लास ख़त्म होने के बाद फिर से हम रूम (होस्टल) चल पड़े। कॉलेज के गेट से निकल कर फिर से एक अनजान दुनिया-सा लगा होस्टल से कॉलेज के बीच का ये रास्ता।फिर से शाम, फिर से रोना, फिर से सिर दर्द और फिर से सोना।
कॉलेज का पहला दिन इतना मजेदार होगा मैंने तो सोचा नहीं था.
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